Kisan andolan

Kisan Andolan Aur Sarkar Se Batchit

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एक बार फिर से पंजाब के किसानों ने  kisan andolan ke chalte sarkar se batchit karne ke lie दिल्ली की चढ़ाई शुरू कर दी है | हजारों की तादाद में किसान ट्रैक्टर ट्रॉली लेकर दिल्ली की ओर निकले हुए हैं | रास्ते में haryana police उनका रास्ता रोके खड़ी है, और किसानों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े जा रहे हैं | हजारों की तादाद में पुलिस वाले तैनात हैं | चप्पे-चप्पे पर बैरिकेडिंग कर दी गई है मगर हर किसी को बस यही डर है कि कि kisan andolan के चलते फिर से 2020-21 जैसे हालात पैदा ना हो जाए | जब देश की राजधानी को लगभग डेढ़ साल तक चारों तरफ से घेर कर जाम कर दिया था |

Kisan Andolan Ka Delhi Par Asar:

इस Kisan andolan se दूसरे शहरों से दिल्ली आना जाना मुश्किल हो गया है | सब्जी नहीं आ रही है, पानी नहीं आ रहा है, और पानी वाले नहीं आ रहे हैं | बच्चे सब पढ़ाई करने नहीं जा पा रहे हैं | यही डर फिर से लोगों के दिल में बैठ चुका है | टेंशन हर दिन बढ़ती जा रही है | Kisan फिर से MSP समेत एक दर्जन मांगों के साथ दिल्ली की चढ़ाई करना चाहते हैं | कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने इन मांगों को समर्थन भी दे दिया है | ऐसे में डर यह है कि दिल्ली और उसके आसपास फिर से 2020-21 जैसे हालात पैदा ना हो जाएं  | लोग सवाल करने लगे हैं कि सरकार इन किसानों की मांगे पूरी करके मुद्दे को खत्म क्यों नहीं करती | वहीं बहुत से जानकार एक्सपर्ट्स मानते हैं कि किसानों की इन मांगों को पूरा किया ही नहीं जा सकता | यह मांगे सिर्फ चुनाव से पहले माहौल बिगाड़ने की कोशिश है |

Kya Hai Kisano Ki Demand:

आखिर वो कौन सी मांगे हैं जो kisan andolan me sarkar से मनवाना चाहते हैं,और आखिर क्यों इन मांगों को पूरा करना सरकार के लिए असंभव है | 19 नवंबर 2021 को केंद्र सरकार ने तीन कृषि बिल वापस लिए तो लंबे वक्त से चला रहा किसान आंदोलन खत्म हो गया | उस आंदोलन के साथ ही दिल्ली आने जाने वाले लाखों लोगों ने चैन की सांस ली थी | आंदोलन तो खत्म हो गया, किसान दिल्ली से वापस भी चले गए मगर तब भी उनकी एक मांग बाकी थी | वो चाहते थे कि sarkar MSP को लेकर कानून बनाए | सरकार ने इस बार बारे में कमेटी बनाकर विचार करने की भी बात की, मगर एक कानून कभी बन नहीं पाया और ना ही एमएसपी को लेकर कानून बना पाना कभी इतना सिंपल था | बस फिर क्या था, अब जब kendra sarkar ka karykal खत्म होने में बस दो महीने का वक्त बाकी है, aur अगला loksabha chunav सर पर खड़ा है तो punjab se hajaron kisan फिर से MSP की डिमांड को लेकर andolan करने लगे हैं | MSP यानी minimum support price फसल का वो दाम होता है जिस पर सरकार किसानों से उनकी फसल खरीदती है, फिर चाहे बाजार में भाव कितना भी कम क्यों ना हो | Bharat sarkar की तरफ से एमएसपी की स्कीम 60 के दशक में तब शुरू की गई थी जब देश में खाने का संकट था,और सरकार harit kranti की टेक्नीक का इस्तेमाल कर ज्यादा से ज्यादा ऐसी फसलें लगाकर देश की जरूरत पूरा करना चाहती थी |

किसानों को ऐसी फसलें लगाने के लिए मोटिवेट करने के लिए एमएसपी स्कीम लाई गई थी, ताकि उन्हें अपनी फसलों के बदले रिटर्न की एक मिनिमम गारंटी दी जा सके | सरकार की तरफ से आज की तारीख में 23 ऐसी फसलों पर एमएसपी तय होती है | जब भी किसी एक सेक्शन की तरफ से ऐसा आंदोलन होता है तो कुछ लोगों को लगता है कि यार सरकार ऐसे लोगों की मांगे मान क्यों नहीं लेती, क्यों चुनाव से पहले किसानों को यूं परेशान किया जा रहा है? जब हर राज्य में सरकारें लोगों को मुफ्त में चीजें बांट रही है अपने वोट बैंक को खुश कर रही है तो इस केस में सरकार ऐसा क्यों नहीं कर रही, उसे क्या प्रॉब्लम है?

Sarkar Kisano Ki Mango Ko Kaise Maane:

तो आखिर kisano ki mangain मान लेने में सरकार को क्या प्रॉब्लम है? बहुत सारे एक्सपर्ट्स का यह मानना है कि इन मांगों को मान लेना इतना भी आसान नहीं है | इसमें कई प्रॉब्लम्स हैं, और सबसे बड़ी प्रॉब्लम है इन मांगों को पूरा करने के लिए जरूरी पैसा | Business today में छपी एक रिपोर्ट के हिसाब से इन मांगों को पूरा करने के लिए सरकार को 10 लाख करोड़ रुपए खर्च करने होंगे | यह रकम कितनी बड़ी है, इसका आप इसी से अंदाजा लगा लें कि इस बार जो अंतरिम बजट पेश हुआ उसमें इंफ्रा प्रोजेक्ट्स का जो बजट था वो लाखों करोड़ों का है, जबकि साल 2020 में कृषि उपज का कुल मूल्य 40 लाख करोड़ था | इसमें डेरी खेती बागवानी पशुधन और एमएसवी फसलें भी शामिल थी | तो एक्सपर्ट्स का कहना यह है कि जिस MSP को लेकर कानून बनाने की बात की जा रही है अगर वो कानून बना दिया जाए तो इतने रुपए आएंगे कहां से | उनका कहना है कि सरकार को या तो infrastructure ke budget से पैसे काटने पड़ेंगे या देश को अपना रक्षा बजट कम करना पड़ेगा | नहीं तो क्या सरकार डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स को बढ़ाकर इस पैसे का इंतजाम करें |

Faslon Ke Lie MSP me Lagne Wala Budget:

क्या इसके लिए कोई तैयार होगा और अभी तो हम सिर्फ faslon ke lie MSP ka Kanoon से पड़ने वाले 10 लाख करोड़ की बात कर रहे हैं | इस सबके अलावा किसान  मनरेगा में रोजगार, मुफ्त बिजली और डीजल सब्सिडी की भी डिमांड कर रहे हैं | इन सारी मांगों के बजट को जोड़ दिया जाए तो फिर यह फिगर 36 लाख करोड़ के आसपास बैठता है | अब सरकार अगर इतना पैसा सब्सिडी में लगा देगी तो उस पैसे की भरपाई करेगी कहां से?  जाहिर तौर पर इससे आपको और हमें मिलने वाला सामान महंगा हो जाएगा | हर चीज पर टैक्स ज्यादा more tax देना पड़ सकता है | ज्यादातर development projects या तो रुक जाएंगे या आगे के लिए टल जाएंगे | आर्मी को भी मजबूत करने में कम पैसा लग पाएगा | एक्सपर्ट्स तो यहां तक कहते हैं कि अगर सभी faslon par MSP देने की मांग मान ली जाए तो इसका सारा खर्च लाखों करोड़ों रूपये तक पहुंच जाता है | फैक्ट ये है कि इस फाइनेंशियल ईयर का हमारा कुल बजट ही 45 लाख करोड़ रूपये का था |

दूसरी बात कानून बनाकर ज्यादातर फसलों के लिए एमएसपी डिसाइड करने का नुकसान यह है कि गन्ने और चावल जैसी फसलें बहुत पानी मांगती हैं | एमएसपी के कारण जब ज्यादातर किसान इन्हें लगाएंगे तो उन इलाकों में पानी की कमी आ जाएगी, और पंजाब में भी यही हुआ | वहां फ्री बिजली और बेहतर एमएसपी के चलते बहुत से किसानों ने इन फसलों को लगाया | इससे ज्यादातर जगह ground water level नीचे चला गया | कई जगह कुएं सूख गए, और वही किसान फायदे में रहे जिनके पास सबसे गहरे bore well थे |

MSP Ka Itihas:

मशहूर आर्थिक पत्रकार और economic times के पूर्व संपादक स्वामीनाथन अयर ने कृषि बिल के वक्त भी यही कहा था कि यह बिल देश की तकदीर बदलकर रख देंगे | बिल के फायदे बताते हुए उन्होंने कहा था कि यह बिल असल में किसानों के लिए सबसे बड़े life changer साबित होंगे | बिल आने के बाद तो किसानों के पास अपनी फसल को बेचने के लिए ऑप्शंस बढ़ जाएंगे | आईयर ने तब लिखा था कि अगर खरीदने वाले के पास ये फ्रीडम है कि वो कहीं से भी खरीद सकता है तो यही फ्रीडम फसल बेचने वाले किसान को भी मिलनी चाहिए, जो कि बिल आने के बाद मिलेगी | तब इस बिल को लेकर एक के बाद एक झूठ फैलाए गए यह कहा गया कि बिल आने के बाद एमएसपी खत्म हो जाएगी, और किसान बर्बाद हो जाएगा | आईयर जैसे बहुत सारे एक्सपर्ट्स का मानना था कि यह देखकर बुरा लगता है कि कैसे किसानों के नाम पर एक खास इलाके से कुछ लोग खड़े होते हैं, और अपनी ताकत के दम पर सरकार को झुका देते हैं |

हकीकत यह है कि 2020-21 में जिस कृषि बिल का पंजाब और हरियाणा के किसानों ने विरोध किया, उसी बिल का महाराष्ट्र और आंध्रा के किसान संगठन समर्थन कर रहे थे | उनकी किसी ने नहीं सुनी | इसमें कोई राय नहीं है कि किसान इस देश के अन्नदाता हैं | इसमें भी कोई शक नहीं है कि खेती किसानी जितना अनप्रिडिक्टेबल पेशा और कोई नहीं है | जहां किसान कर्ज लेकर साल भर अपना खून पसीना लगाते हैं ऐसे में उन्हें अपनी मेहनत के लिए सरकार की तरफ से एक गारंटी की बहुत जरूरत होती है | लेकिन यह भी देखना होगा कि सरकार से सुविधा लेने के नाम पर हम उसे किस हद तक निचोड़ सकते हैं | मशहूर अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी खुलासा करते हैं कि पंजाब में किसानों को साल भर में 1 बिलियन डॉलर यानी 88000 करोड़ की बिजली सब्सिडी मिलती है | फर्टिलाइजर सब्सिडी के त तौर पर इन किसानों को 665 मिलियन डॉलर दिए जाते हैं | वक्त वक्त पर उनके लोन माफ कर दिए जाते हैं | यही वजह है कि पंजाब में जिस किसान के पास पाच एकड़ जमीन भी है वह भारत के अमीर किसानों में शामिल होते है | मगर इस सब के बावजूद किसान जो मांगे कर रहे हैं वह कुछ लोगों के मन में शक पैदा करती है कि क्या इन मांगों का कुछ और मकसद तो नहीं, क्योंकि आंदोलन में शामिल बहुत से लोगों की बातें तो यही साबित करती है फिर चाहे व प्रधानमंत्री मोदी को लेकर दी गई धमकी हो या फिर खालिस्तान की मांग |

Conclusion:

इसके बावजूद kisan andolan में शामिल दो-चार लोगों की बातों से यह प्रूफ नहीं होता कि आंदोलन कर रहे सभी लोगों की यही सोच है | मगर दो-चार लोग भी अगर कैमरे के सामने देश तोड़ने की बात कर रहे हैं तो यह बहुत सीरियस मामला है | दो-चार लोग अगर बोल रहे हैं तो भीड़ में ऐसे और लोगों के होने से इंकार नहीं किया जा सकता जो इनके जैसी ही सोच रखते हो | इसलिए बहुत जरूरी है कि जो भी लोग इन मांगों को लेकर kisan andolan कर रहे हैं उन्हें खुलकर सरकार से बात करनी चाहिए इन लोगों को बच्चों की तरह सिर्फ अपनी मांगों पर अड़ नहीं होगा, बल्कि मांगों का इकोनॉमिक्स भी सरकार को समझाना होगा | साथ में खुद भी यह समझना होगा कि उन मांगों को पूरा करने के लिए देश के लिए क्या मायने हैं | यह बिल्कुल वैसा ही है जैसे हर बाप अपने बच्चों की मांगे पूरी करता है | मगर बच्चे अगर बड़े हो तो उन्हें भी ये समझना होता है कि हमारे पिता के क्या-क्या खर्चे हैं, घर में और भी बहुत सारे मेंबर्स हैं | उन मेंबर्स की भी बहुत जरूरतें हैं | आखिर देश का नागरिक और उसकी सरकार एक परिवार की तरह ही तो है | नाराजगी कितनी बड़ी क्यों ना हो आखिर में हर प्रॉब्लम का इलाज तो मिल बैठकर ही करना है | इसलिए ना तो सरकार को चाहिए कि वह अपने ही नागरिकों पर गोली चलाकर कोई जुल्म करें और ना ही नागरिकों को चाहिए कि वह अपने ही सरकार को दुश्मन मानकर उसके खिलाफ जंग छेड़ दें | अगर दोनों साइड ये बात समझेंगे तो  इस प्रॉब्लम का हल निकालने में कोई दिक्कत होगी |

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